आंध्र प्रदेश विधानसभा में विपक्षी दर्जे की मांग पर वाईएसआर कांग्रेस की जोरदार बहस
आंध्र प्रदेश की राजनीति में इन दिनों वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) और उसके प्रमुख Jagan Mohan Reddy की प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा पाने की मांग को लेकर गहमागहमी बनी हुई है। राज्य विधानसभा में इस मुद्दे पर लगातार बहस जारी है। बुधवार को एक बार फिर विधानसभा में वाईएसआरसीपी ने अपनी मांग को लेकर जोरदार विरोध दर्ज कराया, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष सी अय्यन्ना पत्रुडु ने पार्टी के अनुरोध को खारिज कर दिया।
वाईएसआर कांग्रेस की मांग और अध्यक्ष की प्रतिक्रिया
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (LoP) के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग की थी। लेकिन अध्यक्ष पत्रुडु ने इसे “अवास्तविक” करार देते हुए कहा कि कानून के अनुसार किसी भी पार्टी को विपक्ष के नेता का दर्जा प्राप्त करने के लिए कम से कम 18 सदस्यों की आवश्यकता होती है। वर्तमान में वाईएसआर कांग्रेस के पास केवल 11 सीटें हैं, जो कि 175 सदस्यीय विधानसभा में विपक्षी दर्जा पाने के लिए अपर्याप्त हैं।
गौरतलब है कि मई 2024 में हुए विधानसभा चुनावों में वाईएसआर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। 2019 के चुनावों में 151 सीटें जीतने वाली यह पार्टी इस बार महज 11 सीटों पर सिमट गई, जिससे उसकी विधानसभा में स्थिति बेहद कमजोर हो गई है।
दूसरी बार उठाया मुद्दा, दिल्ली की आप सरकार का दिया उदाहरण
यह दूसरा मौका है जब वाईएसआर कांग्रेस ने विधानसभा के बजट सत्र में इस मुद्दे को उठाया है। इससे पहले 24 फरवरी को भी इस मुद्दे पर बहस हो चुकी है।
Jagan Mohan Reddy ने अपने तर्क के समर्थन में दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार का उदाहरण दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि दिल्ली विधानसभा में भाजपा को सिर्फ तीन सीटें होने के बावजूद विपक्षी दल का दर्जा दिया गया था। जगन का कहना है कि आंध्र प्रदेश में केवल वाईएसआर कांग्रेस ही वास्तविक विपक्षी पार्टी है क्योंकि तेलुगू देशम पार्टी (TDP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जन सेना पार्टी (Jana Sena) सभी मिलकर गठबंधन सरकार चला रहे हैं।
सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
विधानसभा में अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान, Jagan Mohan Reddy ने टीडीपी सरकार और मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी सरकार संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी कर रही है। उनका आरोप है कि वाईएसआर कांग्रेस को सदन में उचित समय नहीं दिया जा रहा, पार्टी के सदस्यों को बोलने का अवसर नहीं मिल रहा और उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी नहीं दिया जा रहा।
उन्होंने विधानसभा में कहा, “अगर विपक्षी पार्टी को सदन में बोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो आम जनता की आवाज़ कौन सुनेगा? हमें 40% मतदाता समर्थन मिला है, फिर अगर हमें विपक्ष का दर्जा नहीं दिया जाता तो असल विपक्ष कौन होगा?”
स्पीकर ने किया विरोध, कोर्ट में लंबित है याचिका
अध्यक्ष अय्यन्ना पत्रुडु ने Jagan Mohan Reddy को याद दिलाया कि उन्होंने इस मुद्दे पर आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर रखी है, जो अभी लंबित है। उन्होंने चेतावनी दी कि विधानसभा में ऐसे बयान देना सदन की अवमानना और विशेषाधिकार हनन का मामला बन सकता है।
वाईएसआर कांग्रेस का लगातार संघर्ष
वाईएसआर कांग्रेस ने पिछले वर्ष चुनावी हार के बाद से ही विधानसभा में विपक्षी दर्जे की मांग की है। इस सिलसिले में जगन मोहन रेड्डी ने जून 2024 में विधानसभा अध्यक्ष को एक पत्र भी लिखा था। लेकिन सरकार की ओर से इस मांग को अब तक स्वीकार नहीं किया गया है।
बीते 26 फरवरी को जब राज्यपाल अब्दुल नज़ीर ने विधानसभा और विधान परिषद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया, तब वाईएसआर कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर सदन से वॉकआउट किया था।
क्या कहता है नियम और भविष्य की संभावनाएं?
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पाने के लिए किसी भी दल के पास सदन की कुल सदस्य संख्या का कम से कम 10% होना आवश्यक है। आंध्र प्रदेश विधानसभा में कुल 175 सीटें हैं, इसलिए विपक्षी नेता का दर्जा पाने के लिए किसी पार्टी को कम से कम 18 सीटें चाहिए। वाईएसआर कांग्रेस के पास सिर्फ 11 सीटें हैं, जिससे उसकी यह मांग संवैधानिक नियमों के अनुसार पूरी नहीं हो रही।
हालांकि, जगन मोहन रेड्डी और उनकी पार्टी इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। अगर कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप करता है या सरकार किसी नतीजे पर पहुंचती है, तो आने वाले दिनों में इस विवाद का समाधान निकल सकता है।
निष्कर्ष
आंध्र प्रदेश की राजनीति में विपक्ष की भूमिका को लेकर यह विवाद अब गंभीर रूप ले चुका है। वाईएसआर कांग्रेस और उसके प्रमुख Jagan Mohan Reddy सरकार पर विपक्ष को दबाने के आरोप लगा रहे हैं, जबकि सरकार संवैधानिक नियमों का हवाला देते हुए उनकी मांग को खारिज कर रही है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट का फैसला क्या आता है और क्या सरकार विपक्ष को अधिक अधिकार देने पर विचार करेगी। इस मुद्दे से आंध्र प्रदेश की राजनीति में नई सरगर्मी आई है, जिसका असर राज्य की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।